लोग क्या कहेंगे !

अगर घर वाले कुछ काम को मना करते हैं तो हम उस बात को मानते नही मगर कोई पड़ोस का कोई टोक दे या मना कर दे तो हम दस बार सोचेंगे की करें या न करें और अक्सर हम वो काम करते ही नही जो दुनिया मना करने के लिए कह्ती है ! कितने अछे हैं हम लोग ! :-) अगर हम औरों की बात न मान कर जो अपने दिल मैं है या जो हम करना चाहते है अगर हम वो करें तो ज्यादा खुश रह पायेंगे और कुछ बेहतर कर पायेंगे !

मैंने अक्सर देखा है जब मैं कोई काम खुद से करती हूँ तो बहुत अच्छा कर पाती हूँ और मुझे बहुत अच्छा महसूस होता है ! अगर मैं दूसरों की सुनती हूँ और वो काम करने के लिए अगर सामने वाला मना कर दे और अगर मैं नही करती तो मुझे एक तो बड़ा बुरा लगता है दुसरा हर समय ये ही लगता है की अगर कर लेती और अच्छा वो जाता तो कितना बड़ी सफलता मिल सकती थी.

कभी भी ये मत सोचो की अगर हमारा काम ख़राब हो गया या पसंद नही आया तो दुनिया क्या कहेगी. जब हम मुसीबत मैं होते हैं तो क्या दुनिया हमारी मदद करने आ जाती है? नही ना ! उल्टा ये ही बोलते हैं की क्या ज़रुरत थी इसको ये काम करने की !

मुझे एक कहानी याद आ गयी इस बात पे. एक बार एक आदमी अपने बेटे के साथ घोड़े पर कही जा रहा था. वो कुछ दूर ही चले होंगे की उन्होंने किसी को बोलते हुए सुना, "कैसे लोग है, सारा बोझ गधे पे डाल रखा है", ये सुनते ही दोनों घोड़े से उतर गए और पैदल चलने लगे, थोड़ी दूर आगे गए ही थे, तो किसी दुसरे व्यक्ति को बोलते हुए सुना, क्या पागल लोग हैं, घोडा साथ मैं है, फिर भी पैदल चल रहे हैं, उनकी ये बात सुनकर बाप बेटे को लगा बात तो सही बोल रहे हैं, ये सुनकर बाप ने बेटे को घोड़े पे बेठा दिया और आगे चल दिए ! कुछ दूर आगे निकले तो किसी और को बोलते हुए सुना, कैसा बेटा है, खुद घोड़े पे बेठा है और बाप को पैदल चला रहा है, ये सुन के बेटे को बड़ा अजीब लगा ! उसने अपने पिता से बोला पिताजी आप घोड़े पे बेठ जाओ, मैं पैदल चलता हूँ ! ऐसा कहके बेटा घोड़े से उतर गया, और बाप को घोड़े पे बेठा दिया, और आगे चलने लगे, कुछ दूर आगे बड़े ही होंगे जब किसी को कहते हुए सुना, कैसा बाप है, बेटे को पैदल चला रहा है और खुद घोड़े पे बेठा है ! अब बाप बेटा दोनों परेशान हो गए, बाप ने बेटे से बोला "बेटा मुझे लगता है ये दुनिया हमें कहीं नही जीने देगी, हम जैसे चाहते हैं हमें वैसे ही करना चाहिए और वो वापिस अपनी तरह से चलने लगे !

कहानी का मतलब आपको आनंदित करना नहीं था, कहानी का निष्कर्ष ये था की हमें जो सही लगे वो ही करना चाहिए, हाँ कुछ मसलों पे अपने परिवार जनों से सलाह मशवरा जरूर करना चाहिए मगर करो वो ही जो आपको लगे की सही है, दुनिया की परवाह किये बिना

खुश रहो, मुस्कुराते रहो :-)

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